यूँ तो है आज तीन तीन टू विलर्स ड्राइविंग के लिए
लेकिन
कभी कभी रिक्शा मे भी सफर कर लेता हूँ
इसी बहाने यादो के झरोखे
मे खो जाता हूँ
याद आता है वो दादर से सायन का सफर
कभी बरसात की बूंदो मे भीगना
कभी ठंठ मे स्वेटर पहनना
कभी तपती धुप मे तपना
कभी किसी का इंतजार करना
कभी लेक्चर से बँक मारना
और पार्क मे बैठ जाना
हाय, क्या सफर था सुहाना
गर होता उस ज़माने मे मोबाइल
मिल जाता उसका ठिकाना
जैसे ही उतरता हूँ घर के पास
वर्तमान मे वापस आ जाता हूँ.
हाय, क्या सफर था सुहाना...
Originally Written by
Dashrath Chaudhari: Date - 23 March 2025
Day - Sunday
Place - Dadar -Mumbai
Time - 21:55 Night
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